ज़िंदगी की रीत।

उम्र के साथ अपनों कि एहमियत और फिक्र
समक्ष आ रही है।
सोचा था, जो पास है… वो साथ ही रहेंगे
कुछ अपने खो कर… अब ज़िंदगी कि रीत
समझ आ रही है।

मिले लोग कई नफरत करने वाले
प्यार करने वालो ने… कभी जताया नहीं
हाल जिसने पूछा… तो बू आई सौदे कि
विश्वास कभी किसी पर कर पाया नहीं।
हर एक मोड़ पर डर है सताया,
ज़िंदगी के एक पहलू ने ही दूसरा सिखाया।

जब सीखा खुद पर विश्वास करना,
तो मूंह फूल गए लोगो के
याद किया जो उन्हे कभी
पता लगा… बस यूं ही भूल गए लोग हमें।
खुद से लड़ कर अपनाया जिन्हें
उनका भी आज साथ नही है…
गिराया खुद को, या उन्होंने मुझे
इसका भी कोई हिसाब नही है।

कोशिशों से हल मिल ही जाता है।
प्यार तो दुश्मन से भी कर लिया जाता है।
दूसरो की जीत मे भी जीत लेते है कैसे,
कैसे लोगो को अपनाया जाता है…
संस्कार मिले है हमे ऐसे।

कुछ आदतें खराब हमारी भी है
इंसान हैं हम भी, समझो तो… समझदारी ही है।
कहने को दुनिया बहुत छोटी है, और बड़ी भी
देखी है हमने बहुत, अभी देखनी बहुत सारी है।


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